Class 10 Hindi A Notes of Chapter 2 “राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद” : तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की है। रामचरितमानस की इन चौपाइयों में सीता स्वयंवर के समय की एक घटना का उल्लेख है। इसमें परशुराम के क्रोध और लक्ष्मण के विनोदी स्वभाव के बारे में बताया गया है। यहाँ जो नोट्स दिए गए हैं वो एक काम समय में खासकर परीक्षा की तैयारी के समय बहित मददगार साबित होंगे।
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
व्याख्या : राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद भाग-
सारांश
- लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि धनुष तोड़ने वाला आपका कोई सेवक होगा, आप यहाँ किसलिए आए हैं?
- परशुराम क्रोधित होकर बोले- सेवक तो सेवा करता है। धनुष तोड़ने वाला सहसबाहु के समान मेरा दुश्मन है। अगर वो सामने नहीं आया तो मैं सबको मार दूँगा।
- परशुराम की बात सुनकर लक्ष्मण मुस्कराकर बोले कि मैंने तो बचपन में अनेक धनुष तोड़े थे परंतु किसी मुनि ने क्रोध नहीं किया।
- परशुराम क्रोधित होकर बोले- तुम मुख सँभालकर बोलो। यह कोई सामान्य धनुष नहीं, अपितु शिव धनुष है।
- लक्ष्मण ने हँसते हुए कहा- हमारे लिए तो सभी धनुष समान है। ऐसा कहते हुए लक्ष्मण को, राम तिरछी आँखों से देख रहे हैं।
- लक्ष्मण – धनुष तो श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया, आप बिना मतलब का गुस्सा कर रहे हैं।परशुराम अपने फरसे की ओर देखकर- शायद तुम मुझे नहीं जानते हो, मैं साधारण मुनि नहीं हूँ। मैं बच्चा समझकर तुम्हें छोड़ रहा हूँ।
- मुझे सारा संसार क्षत्रिय कुल विनाशक के रूप में जानता है। मैं अपनी भुजाओं से धरती को अनेक बार क्षत्रिय रहित कर चुका हूँ।
- मैंने सहसबाहु को मारा था। मेरे फरसे की गर्जना सुनकर गर्भवती स्त्रियाँ भी गर्भहीन हो जाती हैं।
- लक्ष्मण हँसकर बोले– आप प्यार से महान योद्धा होने की बात न बताकर मुझे अपना फरसा दिखा रहे हो। जैसे आप फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं।
- मैं कोई कोहड़े (कद्दू) की बतिया नहीं हूँ जो तर्जनी अंगुली दिखाने से ही कुम्हला जाती है।
- जनेउ देखकर लगता है कि आप ब्राह्मण है और हमारे कुल की परंपरा है कि हम देवता, धरती, हरिजन और गाय पर वार नहीं करते।
- आपके वचन ही इतनें कड़वे है कि आपको धनुष, बाण और कुल्हाड़ी रखने की जरुरत ही नहीं।
- विश्वामित्र गंभीर स्वर में- मुनिवर! यदि इस बालक ने अनजाने में कुछ बोल दिया हो तो इसे क्षमा कर दीजिए।
व्याख्या : राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद भाग- 2
सारांश
- परशुराम विश्वामित्र से- मुनिवर! यह बालक मंद बुद्धि का लगता है जो काल से भी नहीं डर रहा है। काल के मुँह में समा जाएगा तो मुझे दोष मत देना। इसे मेरे बल-प्रताप के बारे में बता दो।
- लक्ष्मण- हे मुनिवर! आप तो खुद ही अपना यशगान कर रहे हो। यदि फिर भी कुछ बचा है तो कहिए, मैं अपनी झल्लाहट नियंत्रित करने की कोशिश करूँगा।
- जो वीर होते हैं वे व्यर्थ में अपनी बड़ाई नहीं करते बल्कि अपनी वीरता को सिद्ध करते हैं। बड़ाई करना तो कायरों का काम हैलक्ष्मण के वचन को सुनकर परशुराम को गुस्सा आ गया और अपना फरसा लहराते हुए बोले कि तुम बार-बार मुझे गुस्सा दिलाकर मृत्यु को निमंत्रण दे रहे हो।।
- परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि मुझे कोई दोष मत देना क्योंकि यह कटुवादी बालक वध के योग्य है।
- विश्वामित्र ने कहा कि हे मुनिवर! साधु लोग तो बालक के गुण दोष की गिनती नहीं करते, इसे क्षमा कर दीजिए। परशुराम ने उत्तर दिया कि सामने अपराधी हो तो खर और कुल्हाड़ी में जरा सी भी करुणा नहीं होती है।
- परंतु इस अपराधी को मैं आपके शील स्वाभाव के कारण छोड़ रहा हूँ। अन्यथा इसका काम तमाम करके गुरु ऋण से मुक्त हो जाता।
- परशुराम की बातें सुनकर विश्वामित्र मन ही मन से हँसे और सोचने लगे कि जो परशुराम को गन्ने में भरे गुड़ की तरह मीठे लग रहे हैं वे दरअसल में फौलाद की बनी तलवार के समान अत्यंत वीर और पराक्रमी हैं।
- लक्ष्मण- हे मुनि आपके पराक्रम के बारे में कौन नहीं जानता। आपने अपने माता-पिता के ऋण को तो उनकी हत्या करके चुकाया था।
- अब गुरु ऋण मेरे मत्थे डालना चाहते हैं। अच्छा होगा कि आप कोई व्यावहारिक बात करें।
- लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने मारने के लिए कुल्हाड़ी उठा ली। सारी सभा हाय-हाय चिल्लाने लगी।
- लक्ष्मण ने कहा आप मुझे बिना वजह के फरसा दिखा रहें हैं। मैं आपको ब्राह्मण समझकर छोड़ रहा हूँ। लगता है आपका सामना युद्ध में किसी सच्चे योद्धा से कभी नहीं हुआ।
- लक्ष्मण के वचन सुनकर सभा में उपस्थित लोग अनुचित-अनुचित कहकर चिल्लाने लगे। जब राम ने देखा कि लक्ष्मण के व्यंग्य से परशुराम का गुस्सा अत्यधिक बढ़ चुका था तो उन्होंने उस आग को शांत करने के लिए जल जैसी ठंडी वाणी निकाली।
विश्लेषण : राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – विश्लेषण
भाषा
जनभाषा- अवधी और ब्रज का सम्मिश्रित रूप
पद्यांश में प्रयुक्त अलंकार
अलंकार – काव्य की सुंदरता बढ़ाने वाले शब्द।
अलंकार अनुप्रास- वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होना।
उदाहरण
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा
पद्यांश में प्रयुक्त छंद
मुख्य छंद- चौपाई
दोहे, सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छंद
पद्यांश में प्रयुक्त रस
रस- काव्य को पढ़ने से होने वाली अनुभूति
वीर रस- इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है।
उदाहरण
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥
पद्यांश में प्रयुक्त कुछ शब्दों के प्रचलित रूप
शब्द – अर्थ
उरिन – ऋणमुक्त
सीलु – स्वभाव
माथे – मस्तक
भये – डर
छमिअ – क्षमा
पद्यांश में प्रयुक्त कुछ शब्दों के विलोम
शब्द – विलोम शब्द
छति – लाभ
जड़ – चेतन
अभिमानी – स्वाभिमानी
सुर – असुर
उपसर्ग
शब्दों के आरंभ में लगकर अर्थ में विशेषता उत्पन्न करने वाले शब्दांश।
उदाहरण
उपसर्ग मूल शब्द उपसर्ग से बने शब्द
बि + लोकि बिलोकि
अनु + चित अनुचित
अ + छोभा अछोभा
मुख्य भाव
इस पाठ में परशुराम को अति क्रोधी रूप में दिखाया गया है। क्रोध हमेशा ही विनाशक रहा है जबकि शांतिचित्त स्वभाव सुखकारक होता है। सदैव शांत चित्त से बात को समझने का प्रयास करना चाहिए।