सूरदास के पद पाठ के प्रश्न उत्तर: Question Answers Class 10 Hindi A

प्रश्न – अभ्यास (सूरदास के पद)

1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उत्तर: गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करती हैं कि तुम्हारे भाग्य की कैसी बिडंबना है कि श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी तुम प्रेम से वंचित रहे। श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति अनुराग नहीं हुआ, वह तुम जैसा ही भाग्यवान हो सकता है। इस तरह गोपियाँ उनको भाग्यवान कहकर यही व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर दुर्भाग्य और किसका हो सकता है।

2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है? [सीबीएसई 2016]

उत्तर: गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना तेल में डूबी मटकी से की है जिस पर पानी की एक बूँद भी नहीं ठहरती। इसके साथ में ही उद्धव की तुलना उस कमल के पत्ते से की है जो पानी में रहकर भी गीला नहीं होता।

3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

उत्तर: गोपियाँ उद्धव को निम्नलिखित प्रतिस्पर्धा द्वारा उन्हें दुख पहुंचाती हैं:

  1. हम गोपियाँ तुम्हारे समान नहीं हैं, जो श्रीकृष्ण के पास रहकर उन्हें प्रेम से अछूती रहती हैं, जैसे तुम्हारा उपहार कमल-पत्र और तेल की मटकी नहीं है।
  2. हम तुम्हारे तरह निर्मम नहीं हैं, जो प्रेम-नदी का स्पर्श तक नहीं करते, जैसे तुम करते हो।
  3. तुम्हारे योग-संदेश हम गोपियों के लिए उचित नहीं हैं।
  4. हमने कृष्ण को मन, वचन और कर्म से बाँध रखा है, जैसे हम लकड़ी को जकड़ रखते हैं।
  5. हमें योग-संदेश कड़वा और व्याधि समान लग रहा है।

4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?

उत्तर: जब गोपियों को श्रीकृष्ण वापस नहीं आएंगे लगा, तो वे अपने मन की प्रेम-भावना को व्यक्त नहीं कर पाने के कारण पहले से ही दुखी हो रही थीं। उन्हें आशा थी कि श्रीकृष्ण वापस आएंगे, लेकिन वे नहीं आए। जब उन्होंने योग-संदेश उद्धव द्वारा प्राप्त किया, तो उनकी विरहाग्नि और बढ़ गई। इस तरह योग-संदेश ने विरहाग्नि में घी की भूमिका निभाई।

5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

उत्तर: गोपियां कह रही थीं कि श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्यार था और उन्हें पूर्ण विश्वास था कि श्रीकृष्ण भी उनके प्यार की मर्यादा का निर्वाह करेंगे। इसके बावजूद, कृष्ण ने योग-संदेश भेजकर स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने प्यार की मर्यादा को नहीं रखी। जिसके कारण गोपियों ने अपनी सभी मर्यादाओं को छोड़ दिया, वहीं कृष्ण ने प्यार की मर्यादा का पालन नहीं किया।

6. श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

उत्तर: गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना प्यार इस तरीके से व्यक्त किया हैं:

  • गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में गुड़ से चींटी की तरह चिपक गई हैं।
  • गोपियाँ हारिल पक्षी के लकड़ी की तरह श्रीकृष्ण को पकड़कर उन्हें अपने जीवन का आधार मानती हैं।
  • वे जागते, सोते, सपने में, दिन-रात श्रीकृष्ण की स्मृति में रमती रहती हैं।
  • वे श्रीकृष्ण के प्रति मन, कर्म और वचन से समर्पित हैं।
  • उन्हें श्रीकृष्ण के प्रेम के आगे योग का संदेश कड़वी ककड़ी की तरह लगता है।

7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

उत्तर: गोपियों ने योग-शिक्षा के बारे में परामर्श देते हुए कहा कि ऐसी शिक्षा उन लोगों को देना उचित है, जिनका मन चकरी
के समान अस्थिर है, चित्त में चंचलता है और जिनका कृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन अटूट नहीं है।

8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साध्ना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

उत्तर: प्रस्तुत पदों के आधार पर, गोपियों का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि प्रेमासक्त और स्नेह-बंधन में बँधे हृदय पर किसी अन्य उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे वे उपदेश अपने ही प्रिय व्यक्ति द्वारा क्यों न दिए गए हों। यही कारण था कि उनको प्रिय श्रीकृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश उन पर प्रभाव नहीं कर सका।

9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

उत्तर: गोपियों के अनुसार राजा का धर्म प्रजा की खुशी मे खुश होना तथा प्रजा के हित मे काम करना होना चाहिए।

10. गोपियों को श्रीकृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?

उत्तर: श्रीकृष्ण ने योग-संदेश को उद्धव से भेजा था, जिसे सुनकर गोपियाँ चकित रह गईं और उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण मथुरा चले जाने के बाद उनके विचारों में परिवर्तन हुआ है। वे प्यार की बदली हुई वस्त्र की जगह योग-संदेश देने लगीं हैं। श्रीकृष्ण पहले के तरीके से नहीं रहे हैं, उन्होंने राजनीतिज्ञ के रूप में खुद को साबित किया है, जो छल-प्रपंच का भी सहारा लेने लगे हैं। वे राजधर्म की उपेक्षा करके अनैतिकता की ओर ध्यान दिया है। इन परिवर्तनों को देखकर वे अपने मन को वापस पाने की बात कहती हैं।

11. गोपियों ने अपने वाक्चतुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चतुर्य की विशेषताएँ लिखिए?

उत्तर: गोपियों की वाक्चातुर्य की विशेषताऍं निम्नलिखित है-

  • स्पष्टता – गोपियाँ बिना किसी उलझन के अपनी बात को स्पष्ट रूप से कह देती हैं।
  • व्यंग्यात्मकता – गोपियाँ व्यंग्य करने में माहिर हैं। वे अपनी दुर्भाग्यता को व्यंग्य करके कहती हैं कि कृष्ण के पास रहकर भी वे उनसे प्यार में वंचित रहती हैं।
  • साहसी – गोपियाँ अपनी हर एक बात बहुत ही साहस के साथ उध्दव के समक्ष रखती है।
  • सहृदयता – उनकी सहृदयता उनके बोलों में स्पष्ट दिखती है। वे कितनी भावुक हैं, यह जानने के लिए जब वे रोते हुए कहती हैं कि हमने अपने प्रेम की भावना को उनके सामने सही तरीके से प्रकट नहीं कर पाई। उनकी चतुराई अनुपम थी।

12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?

उत्तर: सूरदास जी के भ्रमरगीत में उनके अद्वितीय गुणों के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं की एक अलग प्रकार में प्रतिष्ठा है:

  • सूरदास जी के पद भ्रमरगीत में निर्गुण ब्रह्म के विरोध को दिखाते हैं और सगुण ब्रह्म की प्रशंसा करते हैं।
  • वियोग शृंगार के पद में अनुभूति का छवि दिखाते हैं।
  • गोपियों की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन।
  • गोपियों की तर्कशक्ति का चित्रण।
  • गोपियों की स्पष्टता, कुशलता, सहृदयता और व्यंग्यात्मकता को सराहते हैं, जो सब प्रकार से प्रशंसनीय हैं।
  • एकांत प्रेम का दर्शन कराते हैं।
  • गोपियों का चातुर्य उद्धव को मौन कर देता है।
  • आदर्श प्रेम की उच्चता और योग से दूरी को दिखाता है।
  • स्नेहसिक्त उपालंभ अनूठा है।
  • अनुप्रास, उपमा, रूपक अलंकारो की छ्टा ने गीत मे चार-चाँद लगा दिए।

रचना और अभिव्यक्ति

1. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।

उत्तर: गोपियाँ अपने तर्क में कई और भी बातें शामिल कर सकती थीं।

वे कह सकती थीं कि यदि योग इतना ही महत्त्वपूर्ण था तो श्रीकृष्ण ने उनसे पहले प्रेम ही क्यों किया था? यदि ऐसा ज्ञात होता कि कृष्ण का प्रेम नाटकीय है तो हम अपना मन समर्पित कर आज इतने व्यथित क्यों होते?

यह भी संभव है कि हे उद्धव! तुम्हारे समीप रहते-रहते ज्ञान की बातें सुनते-सुनते तुम्हारा ही प्रभाव पड़ गया हो और प्रेम की तुलना में अब उन्हें (श्रीकृष्ण) योग ही श्रेष्ठ लगने लगा हो।

उद्धव हमारे पास एक ही मन था, जिसे हमने कृष्ण को समर्पित कर दिया है। अब निर्गुण ब्रह्म का ध्यान किस मन से करें। हे उद्धव! हमारे लिए यह संभव नहीं है कि हम प्रेम को छोड़कर योग को अपनाएँ।

2. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाकचातुर्य में मुखरित हो उठी?

उत्तर:उद्धव बहुत ज्ञानी थे, लेकिन उन्हें व्यावहारिकता का अनुभव नहीं था। उस पर भी वे प्रेम के क्षेत्र से तो पूर्णतः अनभिज्ञ थे। इसलिए गोपियों ने कहा था ‘प्रीति नदी में पाउँ न बोरयौ’। इस कारण व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में गोपियों की वाक्पटुता के सम्मुख उद्धव को विवश हो चुप रहना पड़ा। इसके अलावा गोपियों के पास श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, असीम लगाव और समर्पण की शक्ति थी। वे अपने प्रेम के प्रति दृढ़ विश्वास रखती थीं। यह सब उननके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठा।

3. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: गोपियों ने यह कहा कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति सीख ली है, इसलिए पहले हमारी चिंता रहती थी, लेकिन अब वे कूटनीतिज्ञ हो गए हैं और उन्हें अब गोपियों की कोई चिंता नहीं है। यह गोपियों का कथन समकालीन राजनीति में पूरी तरह से उभरता है क्योंकि जब राजनेताओं को वोट की आवश्यकता पड़ती है, तब वे जनता के पास आते हैं और उनके सगे बन जाते हैं, लेकिन बाद में जब वे जीतकर राजनेता बन जाते हैं, तो वे श्रीकृष्ण की भांति सारी जनता को भूल जाते हैं।


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