The poem पहली बूंद (Pehli Boond) by Gopalkrishna Kaul is beautifully explained and analysed in this post, making it easier for students to understand. With a detailed breakdown of each stanza, we cover the meanings of important words, poetic devices, and line-by-line interpretations in both Hindi and English. This guide is designed to help CBSE Class 6 students studying the NCERT Hindi textbook ‘Malhar.’
Chater 3 Pahli Boond (पहली बूंद) Poem Explanation and Analysis – Class 6 Hindi textbook ‘Malhar’
यहाँ कक्षा 6 के छात्रों के लिए ‘पहली बूंद’ कविता की सरल और रोचक व्याख्या दी गई है। यह कविता गोपालकृष्ण कौल द्वारा लिखी गई है और एनसीईआरटी की कक्षा 6 की हिंदी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में शामिल है। पोस्ट में कविता की पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या, शब्दार्थ, अलंकार, और कविता का भाव सहज भाषा में समझाया गया है। यह सामग्री विद्यार्थियों को कविता का गहराई से आनंद लेने और परीक्षा की तैयारी में मदद करने के उद्देश्य से तैयार की गई है।
The poem ‘पहली बूंद’ (Pehli Boond) by Gopalkrishna Kaul has been beautifully explained and analysed here for CBSE Class 6 students studying NCERT Hindi textbook ‘Malhar’ for Grade 6. This post covers line-by-line explanation in Hindi and English, along with word meanings, poetic devices, and the central idea of the poem.
कविता ‘पहली बूंद’ का केन्द्रीय भाव (Central Idea)
- यह कविता बारिश की पहली बूँद के धरती पर गिरने का सुंदर और भावनात्मक चित्र प्रस्तुत करती है।
- इसमें ‘पहली बूंद’ को एक उम्मीद और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव भी झलकता है।
- कवि दिखाते हैं कि कैसे पहली बूँद गिरते ही धरती पर नया जीवन आ जाता है।
- सूखी धरती हरियाली से भर जाती है और छोटे-छोटे अंकुर बाहर निकल आते हैं।
- समुद्र से पानी उड़कर बादल बनता है, और ये बादल गर्जना करते हैं, जैसे नगाड़े बज रहे हों।
- जब बारिश होती है, तो धरती की प्यास बुझ जाती है और वह फिर से खुश और हरी-भरी हो जाती है।
- पूरी कविता में कवि ने प्रकृति की सुंदरता, परिवर्तन और जीवन का चक्र बड़ी कोमलता से दिखाया है।
‘पहली बूँद‘ कविता की सरल व्याख्या | कक्षा 6 हिन्दी पाठ्य पुस्तक ‘मल्हार’
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘पहली बूंद’ से अवतरित है जिस के रचयिता गोपालकृष्ण कौल हैं।
प्रसंग: कवि गोपालकृष्ण कौल ने इस कविता में पहली बारिश की बूँद के धरती पर गिरने का सुंदर चित्र खींचा है। जब पहली बूँद धरती पर गिरती है, तो सूखी धरती फिर से हरी-भरी हो जाती है। धरती में छुपा नया जीवन बाहर आता है।
आइए, विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 “पहली बूंद” कविता के भावार्थ को समझते हैं।
कविता : पहली बूँद (पहला छंद )
“वह पावस का प्रथम दिवस जब,
पहली बूंद धरा पर आई।
अंकुर फूट पड़ा धरती से,
नव-जीवन की ले अंगड़ाई।”
प्रसंग (Context): ये पंक्तियाँ वर्षा ऋतु के आगमन के प्रारंभिक क्षणों और उसके तत्काल प्रभाव का सुंदर वर्णन करती हैं।
शब्द और उनके अर्थ (Glossary):
शब्द | अर्थ | English meaning |
---|---|---|
पावस | बारिश का मौसम | Rainy season |
प्रथम दिवस | पहला दिन | First day |
बूँध | बूँद (बारिश की बूँद) | Drop (of rain) |
अंकुर | नया पौधा | Sprout or new plant |
नव-जीवन | नया जीवन | New life |
अंगड़ाई | शरीर फैलाकर उठने की क्रिया | Stretching (like waking up) |
पंक्ति-दर-पंक्ति अर्थ एवं व्याख्या :
“वह पावस का प्रथम दिवस जब,”
➔ जब बारिश का पहला दिन था।
“पहली बूंद धरा पर आई।”
➔ उस दिन पहली बारिश की बूँद धरती पर गिरी।
अर्थ: कवि उस विशेष दिन का उल्लेख कर रहे हैं, जब वर्षा ऋतु (पावस) का पहला दिन था और उस दिन पहली बार वर्षा की बूंद पृथ्वी (धरा) पर गिरी।
भाव: “पावस का प्रथम दिवस” एक लंबे इंतजार के बाद आए सुखद परिवर्तन का संकेत देता है। “पहली बूंद धरा पर आई” उस महत्वपूर्ण क्षण को रेखांकित करता है जो समस्त प्रकृति में नवजीवन का संचार करने वाला है। इसमें एक ताज़गी और उम्मीद का एहसास है।
“अंकुर फूट पड़ा धरती से,”
➔ धरती से छोटे-छोटे पौधों के नए अंकुर (बीजों से निकली छोटी टहनी) निकल आए।
“नव-जीवन की ले अंगड़ाई।”
➔ नए जीवन ने अंगड़ाई ली, यानी प्रकृति में फिर से नयापन और ताजगी (हरियाली) आ गई।
अर्थ: जैसे ही वर्षा की पहली बूंद धरती पर पड़ी, मानो धरती के भीतर सोए हुए बीज से अंकुर फूट पड़ा। यह अंकुर इस प्रकार बाहर आया जैसे कोई नव-जीवन आलस्य त्यागकर अंगड़ाई ले रहा हो और जागृत हो (उगने ओर पनपने की कोशिश) रहा हो।
भाव: यह पंक्तियाँ वर्षा के तत्काल और जादुई प्रभाव को दर्शाती हैं। “अंकुर फूट पड़ा” जीवन की स्फूर्ति (life energy) और प्रकृति की उर्वरता (fertility of the earth) का प्रतीक है। “नव-जीवन की ले अंगड़ाई” में अंकुर के प्रस्फुटन (germination) को मानवीय क्रिया (अंगड़ाई लेना) से जोड़कर अत्यंत सजीव और मनोहारी (pleasant) बना दिया गया है। यह प्रकृति में एक नई शुरुआत, ऊर्जा और चेतना के संचार का भाव व्यक्त करता है। इसमें सृजन और उल्लास का भाव प्रमुख है।
समग्र भावार्थ:
ये पंक्तियाँ वर्षा की पहली बूंद के महत्व को स्थापित करती हैं। यह सिर्फ पानी की एक बूंद नहीं है, बल्कि यह जीवन का संदेश लेकर आती है। बीज का अंकुरित होना उस नए जीवन चक्र का प्रतीक है जो वर्षा के साथ आरंभ होता है।
- इस छंद (stanza) में कवि ने बताया है कि जैसे ही बारिश की पहली बूँद धरती पर गिरती है, धरती में छुपा हुआ जीवन जाग जाता है।
- बीज अंकुरित हो जाते हैं और धरती फिर से हरी-भरी और जीवंत हो उठती है।
- यह दृश्य हमें उम्मीद, खुशहाली और प्रकृति के पुनर्जीवन (new birth of nature)) का संदेश देता है।
In this stanza, the poet has told that as soon as the first drop of rain falls on the earth, Life hidden in the earth wakes up. The seeds germinate and the earth again becomes green and alive. In a way, it is a beautiful picture of the new birth of nature.
काव्य सौंदर्य (Poetic Devices):
- मानवीकरण (Personification):
➔ “नव-जीवन की ले अंगड़ाई” — यहाँ जीवन को एक व्यक्ति की तरह दिखाया गया है जो अंगड़ाई ले रहा है। - चित्रात्मकता (Imagery):
➔ कवि ने ऐसा दृश्य खींचा है कि बच्चों की आँखों के सामने धरती से अंकुर फूटते और जीवन मुस्काता हुआ दिखाई देता है। - अनुप्रास अलंकार (Alliteration):
➔ “पावस का प्रथम”, “नव-जीवन” — एक जैसे ध्वनि वाले शब्द सुंदरता बढ़ाते हैं।
कविता : पहली बूँद (दूसरा छंद )
“धरती के सूखे अधरों पर,
गिरी बूंद अमृत-सी आकर।
वसुंधरा की रोमावली-सी,
हरी दूब पुलकी-मुस्काई।
पहली बूंद धरा पर आई।।”
प्रसंग:
इन पंक्तियों में कवि ने पहली बारिश की बूंद के सूखी धरती पर गिरने से होने वाले प्रभाव का खूबसूरत वर्णन किया है। कवि कहता है कि जैसे ही वर्षा की बूँद पृथ्वी के सूखे ओठों पर गिरी, वह अमृत के समान प्रतीत हुई और धरती का रोम-रोम चमकने लगा। हरी घास भी मानो मुस्कुराने लगी। इस पहली बूँद ने जीवन में उमंग और उत्साह का संचार कर दिया।
शब्द और उनके अर्थ:
शब्द | अर्थ | English meaning |
---|---|---|
अधर | होंठ | Lips |
अमृत | जीवन देने वाला रस | Nectar / Divine drink |
वसुंधरा | धरती माता | Mother Earth |
रोमावली | शरीर के छोटे-छोटे रोम | Fine hair (on body) |
पुलकी-मुस्काई | खुशी से कंपन करती और मुस्कुराती | Smiling with joy |
पंक्ति-दर-पंक्ति अर्थ एवं व्याख्या:
“धरती के सूखे अधरों पर,”
➔ सूखी धरती के होंठों (अधरों) पर, (पृथ्वी की सतह)
“गिरी बूंद अमृत-सी आकर।”
➔ बारिश की बूँद अमृत (जीवन देने वाला) जैसी गिरती है।
अर्थ: कवि कल्पना करते हैं कि लंबे समय से वर्षा न होने के कारण धरती के होंठ (अधर) सूख गए हैं, ठीक वैसे ही जैसे प्यास से किसी के होंठ सूख जाते हैं। उन सूखे होंठों पर जब वर्षा की पहली बूँद गिरती है, तो वह अमृत के समान जीवनदायिनी और तृप्त करने वाली प्रतीत होती है।
भाव: इन पंक्तियों में धरती की प्यास और वर्षा की बूँद की महत्ता का अत्यंत सशक्त चित्रण है। “सूखे अधरों” का प्रयोग धरती के सूखेपन और उसकी व्याकुलता को दर्शाता है।
बूँद को “अमृत-सी” कहकर कवि उसके जीवन देने वाले और शांति प्रदान करने वाले गुण को उजागर करते हैं। इसमें एक गहरी तड़प के बाद मिली शांति और तृप्ति का भाव है – जैसे प्यास से तड़पते की प्यासे की प्यास बुझ जाए।
“वसुंधरा की रोमावली-सी,”
➔ धरती माता के रोम-कण (छोटे-छोटे बाल जैसे ) पर,
“हरी दूब पुलकी-मुस्काई।”
➔ हरी नई-नई घास खिल उठीं, मुसकुराने लगीं।
अर्थ: वसुंधरा (पृथ्वी) के शरीर पर उगी हुई हरी-हरी दूब (घास) ऐसी लग रही है मानो वह पृथ्वी के रोंगटे (रोमावली) हों। वर्षा की बूँद पड़ते ही यह दूब प्रसन्नता से खिल उठी है और मुस्करा रही है। “पुलकी” का अर्थ है रोमांचित होना या खुशी से काँप/सिहर उठना।
भाव : यहाँ प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। दूब की हरियाली और उसकी ताजगी को पृथ्वी के रोमांच और प्रसन्नता के रूप में दिखाया गया है।
“रोमावली-सी” उपमा बहुत सुन्दर है, जो यह दर्शाती है कि जैसे खुशी या सुखद अनुभव से हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वैसे ही धरती भी वर्षा की बूँद पाकर रोमांचित हो उठी है, और यह रोमांच उसकी हरी दूब के रूप में प्रकट हो रहा है जो खुशी से झूमती हुई मुस्करा रही है। यानि हरी दूब को पृथ्वी के रोंगटे कहा गया है।
“पहली बूंद धरा पर आई।।”
➔ पहली बूँद धरती पर आ गई।
अर्थ: और यह सारा सुखद परिवर्तन, यह सारी खुशी और तृप्ति इसलिए है क्योंकि वर्षा की पहली बूँद पृथ्वी पर आ चुकी है।
भाव: यह पंक्ति, जो इस कविता का स्थायी भाव है, यहाँ फिर से उस एक बूँद के असाधारण प्रभाव को स्थापित करती है। यह बूँद केवल जल नहीं, बल्कि जीवन, आनंद और सौंदर्य की वाहक है।
समग्र भावार्थ:
इन पंक्तियों में सूखी धरती की तुलना प्यासे अधरों से करना और फिर उस पर गिरी बूँद को अमृत बताना एक अत्यंत प्रभावशाली कल्पना है। दूब का खिलना और मुस्कुराना प्रकृति के आनंद को सजीव रूप देता है। यह कवितांश वर्षा के जीवनदायी प्रभाव को सुंदरता से रेखांकित करता है, जिससे पाठक के मन में भी एक स्फूर्ति और आनंद का संचार होता है।
- यहाँ कवि ने धरती को एक प्यारी माँ की तरह चित्रित किया है।
- जब सूखी धरती पर पहली बारिश की बूँद गिरती है, तो ऐसा लगता है जैसे धरती के सूखे होंठों (धरातल) को अमृत मिल गया हो।
- धरती के रोम-कण (छोटे-छोटे पौधे और घास) हरे होकर खुशी से मुसकुरा उठते हैं।
- यह प्रकृति के जीवन में नयी ऊर्जा और आनंद के आने का सुंदर चित्र है।
Here the poet has painted the earth like a cute mother. When the first rain drop falls on the dry earth, it seems as if the dry lips of the earth have got nectar. The Earth’s Rome (small plants and grasses) smile happily with green. It is a beautiful picture of new energy and bliss in nature’s life.
काव्य सौंदर्य (Poetic Devices):
- मानवीकरण (Personification):
➔ धरती के होंठ – जैसे धरती एक जीवित प्राणी हो।
➔ हरी दूब – को पुलकित ओर मुस्कराते हुए बताया गया है। - रूपक (Metaphor):
➔ बूँद को अमृत कहा गया है। - उपमा (Simile)
➔”रोमावली-सी” – हरी दूब के खिलने की तुलना रोंगटे खड़े होने से की गई है। - चित्रात्मकता (Imagery):
➔ धरती पर बूँद गिरने और हरियाली फैलने का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया गया है।
कविता : पहली बूँद (तीसरा छंद )
“आसमान में उड़ता सागर,
लगा बदलियों के स्वर्णिम पर।
बजा नगाड़े जगा रहे हैं,
बादल धरती की तरुणाई।
पहली बूंद धरा पर आई।।”
प्रसंग:
यह पंक्तियाँ वर्षा के आगमन से पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों की सुंदरता और भव्यता को दर्शाती हैं। कवि की कल्पना बादलों और बिजली की चमक को एक नया और मनमोहक दृश्य प्रदान करती है।
शब्द और उनके अर्थ (Glossary):
शब्द | अर्थ | English Meaning |
---|---|---|
सागर | समुद्र | Ocean |
बदलियाँ | बादल | Clouds |
स्वर्णिम | सुनहरा | Golden |
नगाड़ा | बड़ा ढोल | Big drum |
तरुणाई | जवानी, ताजगी | Youthfulness, freshness |
पंक्ति-दर-पंक्ति अर्थ एवं व्याख्या:
“आसमान में उड़ता सागर,”
➔ समुद्र का पानी बादल बनकर आकाश में उड़ रहा है।
“लगा बदलियों के स्वर्णिम पर।”
➔ बादलों पर सोने के पंख लग गए हैं (बिजली की चमक से)।
अर्थ: विशाल समुद्र ही मानो आसमान में उड़ रहा है। यह “उड़ता सागर” वास्तव में पानी से भरे घने बादलों का समूह है जो आकाश में फैला हुआ है।
“बदलियों के स्वर्णिम पर” का अर्थ है कि इन बादलों रूपी सागर पर बिजलियों की चमक सुनहरे पंखों के समान लग रही है। जब बिजली चमकती है तो उसकी सुनहरी आभा ऐसी प्रतीत होती है जैसे इन बादलों ने सुनहरे पंख लगा लिए हों।
भाव: यहाँ प्रकृति के विराट और अद्भुत रूप का चित्रण है। कवि की कल्पना बादलों और बिजली की चमक को एक नया और मनमोहक दृश्य प्रदान करती है।
“बजा नगाड़े जगा रहे हैं,”
➔ बादल नगाड़े (ढोल) बजा रहे हैं (गरज रहे हैं)।
“बादल धरती की तरुणाई।”
➔ और धरती के छोटे-छोटे पौधों में जवानी और ताजगी जगा रहे हैं।
अर्थ: बादलों की गरज को नगाड़ों की आवाज़ के समान बताया गया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे बादल नगाड़े बजाकर सोई हुई धरती की युवावस्था (तरुणाई) को जगा रहे हैं।
तरुणाई यहाँ धरती की उस शक्ति, ऊर्जा और हरियाली का प्रतीक है जो वर्षा के अभाव में मुरझा सी गई थी।
भाव: इन पंक्तियों में उत्साह और नवजीवन (new life) के संचार का भाव है। बादलों की गरज एक उद्घोषणा के समान है, जो धरती को यह संदेश दे रही है कि अब शुष्कता का अंत और हरियाली व नवजीवन का आरंभ होने वाला है। यह प्रकृति में एक नई स्फूर्ति (energy) और चेतना (awareness) जगाने का संकेत है।
“पहली बूँध धरा पर आई।।”
➔ पहली बूँद धरती पर आ गई।
अर्थ (Meaning): अंततः, वर्षा की पहली बूंद पृथ्वी पर गिरती है। यह एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो एक लंबे इंतज़ार के बाद आया है।
भाव (Feeling/Essence): पहली बूंद का गिरना आशा, राहत और एक नए चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। यह सूखी और प्यासी धरती के लिए अमृत के समान है, जो उसमें नया जीवन और ताजगी भर देगी।
समग्र भावार्थ:
इन पंक्तियों में वर्षा-ऋतु के आगमन का उत्साह और प्रकृति के नए जीवन का संचार बहुत सुंदरता से चित्रित किया गया है।
कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों (बादल, बिजली, गरज, वर्षा की बूंद) का मानवीकरण करते हुए उन्हें सजीव बना दिया है। इन पंक्तियों में प्रकृति की शक्ति, सुंदरता, और जीवनदायिनी क्षमता का अद्भुत चित्रण है।
- बादलों को समुद्र के समान आकाश में तैरता हुआ दिखाया गया है, जो सोने जैसी चमक या पंख लिए हुए हैं क्योंकि उन पर बिजली चमकती है तो ऐसा लगता है।
- बादल गरज रहे हैं, मानो ढोल बजाकर पृथ्वी को जगा रहे हों।
- वर्षा की पहली बूंद पृथ्वी पर गिरते धरती में नया जीवन, ताजगी और जवानी लौट आती है।
- यह एक सुंदर प्राकृतिक चक्र (cycle) का चित्रण है — समुद्र से जल उठता है, बादल बनता है, और धरती को फिर से जीवन देता है।
In these lines, the poet has shown the water raised from the sea as clouds, which floats in the golden (golden) sky. Clouds roar like playing drums, and their rain returns new life, freshness and youth in the earth. It is a depiction of a beautiful natural cycle – burning from the sea, forms a cloud, and gives life to the earth again.
काव्य सौंदर्य (Poetic Devices):
- रूपक (Metaphor):
➔ “आसमान में उड़ता सागर” – बादलों (उड़ता सागर) की तुलना समुद्र से की गई है।
➔ “धरती की तरुणाई” में धरती को युवा मानकर उसकी ताजगी का वर्णन। धरती का पुनः हरा-भरा होना = जवान होना। - उपमा (Simile):
➔ बदलियों को स्वर्णिम कहा गया है यानी बादल को सोने जैसा बताया गया है। - मानवीकरण (Personification):
➔ बादलों को ‘नगाड़ा बजाना’ और ‘जगाना’ जैसी मानवीय क्रियाएँ दी गई हैं। - चित्रात्मकता (Imagery):
➔ समुद्र, बादल और धरती के बदलते रूपों का सुंदर दृश्य खींचा गया है।
कविता : पहली बूँद (चौथा छंद )
काली पुतली-से ये जलधर।
करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,
धरती की चिर-प्यास बुझाई।
बूढ़ी धरती शस्य-श्यामला,
बनने को फिर से ललचाई।
पहली बूंद धरा पर आई।।”
प्रसंग:
वर्षा की पहली बूँद के पुनर्जीवन देने की शक्ति का यहाँ अद्भुत वर्णन है। कवि यह दिखाते हैं कि कैसे वर्ष की बूंद सूखी और बूढ़ी (निर्जीव) धरती में भी नई आशा और जीवन का संचार (हरियाली) कर देती है।
शब्दार्थ: (Meanings)
शब्द | अर्थ | English meaning |
---|---|---|
अंबर | आकाश | Sky |
जलधर | बादल | Clouds |
करुणा-विगलित | दया से भरा हुआ | Filled with compassion |
अश्रु | आँसू | Tears |
चिर | बहुत दिनों का | ever, lasting since long |
शस्य-श्यामला | हरी-भरी फसलें/वनस्पति वाली धरती | Earth covered with green crops |
पंक्ति-दर-पंक्ति अर्थ एवं व्याख्या:
“नीले नयनों-सा यह अंबर,”
➔ नीली आँखों जैसा सुंदर आकाश है।
“काली पुतली-से ये जलधर।”
➔ बादल काली आँख की पुतली जैसे हैं।
अर्थ: कवि नीले आकाश (अंबर) की तुलना सुंदर नीली आँखों (नयनों) से कर रहे हैं। और उन नीली आँखों के बीच जो काले बादल (जलधर – जल को धारण करने वाले) छाए हुए हैं, वे उन आँखों की काली पुतलियों के समान प्रतीत हो रहे हैं।
भाव: इन पंक्तियों में आकाश और बादलों को मानवीय अंगों (आँखें और पुतलियाँ) के रूप में देखकर कवि ने एक बहुत ही आकर्षक और सजीव कल्पना प्रस्तुत की है।
“करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,”
➔ दया से भरे आँसू जैसे पानी बरसाकर,
“धरती की चर-प्यास बुझाई।”
➔ धरती की गहरी प्यास बुझा दी गई।
अर्थ: ऐसा लग रहा है मानो आकाश रूपी आँखें करुणा (दया) से द्रवित (विगलित) होकर आँसू (अश्रु) बहा रही हैं, और ये आँसू ही वर्षा की बूँदें हैं जो धरती की बहुत पुरानी (चिर) प्यास को बुझा रही हैं।
भाव: यहाँ वर्षा को केवल एक प्राकृतिक घटना न मानकर उसे प्रकृति की करुणा और सहानुभूति के रूप में दर्शाया गया है। आकाश मानो धरती की प्यास और उसके सूखेपन को देखकर द्रवित हो उठा है और आँसुओं के रूप में वर्षा करके उसकी पीड़ा हर रहा है। इसमें प्रकृति के जीवनदायी स्वरूप का भाव निहित है।
“बूढ़ी धरती शस्य-श्यामला,”
➔ धरती फिर से हरी-भरी फसलों से भर गई।
“बनने को फिर से ललचाई।”
➔ धरती फिर से सुंदर बनने को लालायित हो उठी।
अर्थ: गर्मी और सूखे के कारण जो धरती अपनी हरियाली खोकर बूढ़ी और निर्जीव सी हो गई थी, वह अब वर्षा की बूँदों को पाकर फिर से हरी-भरी (शस्य-श्यामला – फसलों और हरियाली से युक्त) होने के लिए लालायित हो उठी है, उसकी इच्छा जाग उठी है।
भाव: यह पंक्तियाँ धरती में नवजीवन के संचार और पुनरुत्थान की आशा को दर्शाती हैं। “बूढ़ी धरती” शब्द गर्मी से त्रस्त धरती की दयनीय स्थिति का बोध कराता है, जबकि “शस्य-श्यामला बनने को फिर से ललचाई” उसके अंदर एक नई उमंग और जीवन की इच्छा को प्रकट करता है। इसमें आशा, उल्लास और प्रकृति के कायाकल्प का सुंदर भाव है।
“पहली बूंद धरा पर आई।।”
अर्थ: और यह सारा परिवर्तन उस पहली वर्षा की बूंद के पृथ्वी पर गिरने से संभव हुआ है।
भाव: यह पंक्ति, जो कविता में बार-बार आती है, हर बार एक नए संदर्भ और गहराई के साथ प्रकट होती है। यहाँ यह इस बात पर बल देती है कि प्रकृति में एक छोटा सा परिवर्तन (पहली बूंद का गिरना) भी कितने बड़े और सकारात्मक बदलावों का सूत्रपात कर सकता है। यह उम्मीद और एक नई शुरुआत का प्रतीक है।
समग्र भावार्थ:
इन पंक्तियों में कवि ने आकाश, बादल और वर्षा को मानवीय भावनाओं और रूपों से जोड़कर एक अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्र खींचा है। प्रकृति की सुंदरता, उसकी करुणा, और उसकी पुनर्जीवन देने की शक्ति का यहाँ अद्भुत वर्णन है। वर्षा की पहली बूँद के महत्व को उजागर करते हुए कवि यह दिखाते हैं कि कैसे वह सूखी और निर्जीव धरती में भी नई आशा और जीवन का संचार कर देती है।
- कवि ने आकाश और बादलों को आँखों के सुंदर प्रतीक से जोड़ा है।
- बादल दया से भरकर आँसू की तरह बरसते हैं और धरती की लंबी प्यास को शांत करते हैं।
- बारिश के बाद धरती हरियाली से लहलहाने लगती है, फसलें लहराने लगती हैं।
- धरती फिर से जीवन और सौंदर्य की ओर बढ़ने लगती है।
- यह एक पूर्ण नवनिर्माण (regeneration) का दृश्य है।
काव्य सौंदर्य (Poetic Devices):
- मानवीकरण (Personification):
➔ बादल दया से भरकर आँसू बहाते हैं। धरती को बूढ़ी बताया गया है। धरती ललचाती है। - उपमा (Simile):
➔ अंबर को नीले नयनों से और जलधर को काली पुतली से तुलना की गई है। - अनुप्रास (Alliteration):
➔ नीले-नयनों सा – ‘न’ की पुनरावृत्ति - चित्रात्मकता (Imagery):
➔ बच्चों के मन में साफ-साफ धरती पर हरियाली और फसलों का दृश्य उभरता है।