Class 12 English: Hindi Translation of ‘The Tiger King’ – Line by Line Breakdown

‘The Tiger King’ is an engaging story from the Vistas NCERT textbook, part of the Class 12 English Core syllabus. Get here a simple and clear line-by-line Hindi translation to help students understand the chapter effortlessly. Whether you’re preparing for Board exams or revising the text, this #SirjiTutorials ensures easy learning and better comprehension.

Line by Line Hindi Translation of ‘The Tiger King’ Lesson Class 12 English Core NCERT Textbook ‘Vistas’

The chapter ‘The Tiger King’ from the NCERT textbook Vista’ is translated here line by line into Hindi.

PART – I

यह कहानी प्रतिबंधपुरम के महाराजा की है, जो इसके नायक हैं। उन्हें कई नामों से जाना जाता था — हिज हाइनेस जमादार-जनरल, खिले़दार-मेजर, सता व्याघ्र संहारी, महाराजाधिराज विश्व भूवन सम्राट, सर जिलानी जंग जंग बहादुर, M.A.D., A.C.T.C., या C.R.C.K.। लेकिन आमतौर पर उन्हें टाइगर किंग (Tiger King) कहा जाता था।

मैं आपको यह बताने आया हूँ कि उन्हें टाइगर किंग क्यों कहा गया। मेरा कोई इरादा नहीं है कि मैं कहानी शुरू करूं और बीच में ही छोड़ दूं। यहाँ तक कि अगर कोई स्टूका बॉम्बर (जर्मन युद्धक विमान) भी आ जाए, तब भी मैं अपनी कहानी से भटकने वाला नहीं हूँ। चाहे स्टूका खुद ही भाग जाए, मेरी कहानी नहीं रुकेगी।

कहानी की शुरुआत में ही टाइगर किंग के बारे में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताना ज़रूरी है। जो भी उनके बारे में पढ़ेगा, उसके मन में यह स्वाभाविक इच्छा जागेगी कि वह इस अदम्य साहस वाले इंसान से मिल सके। लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है

जैसे भरत ने राम से दशरथ के बारे में कहा था, वैसे ही — टाइगर किंग अब इस संसार में नहीं हैं। यानी कि टाइगर किंग की मृत्यु हो चुकी है

उनकी मौत का तरीका बहुत ही रोचक और असाधारण था। और यह राज़ कहानी के अंत में ही खुल सकता है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब वह जन्मे थे, तभी ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि एक दिन टाइगर किंग की मृत्यु निश्चित है

“यह बच्चा आगे चलकर सभी योद्धाओं में सबसे महान योद्धा, सभी वीरों में सबसे बड़ा वीर, और सभी विजेताओं में सबसे बड़ा विजेता बनेगा। लेकिन…” ज्योतिषियों ने अपने होंठ काटे और मुश्किल से शब्दों को निगला। जब उन्हें मजबूर किया गया कि वे आगे बोलें, तो उन्होंने कहा, “यह एक ऐसा रहस्य है जिसे बताया नहीं जाना चाहिए, लेकिन हमें मजबूरी में बताना पड़ रहा है — इस नक्षत्र में जन्मा यह बालक एक दिन अवश्य मरेगा।

उसी क्षण एक अद्भुत चमत्कार हुआ। केवल दस दिन के जिलानी जंग जंग बहादुर के होंठों से एक आश्चर्यजनक वाक्य निकला —
“हे ज्ञानी ज्योतिषियों!”

सब लोग अचंभे से स्तब्ध रह गए। वे एक-दूसरे की ओर हैरानी से देखने लगे और पलकों को झपकाया

“हे ज्ञानी ज्योतिषियों! यह मैंने ही कहा था,” फिर वही आवाज़ आई।

इस बार कोई शक की गुंजाइश नहीं थी। यह आवाज़ उसी दस दिन के नवजात शिशु की थी, जिसने ये शब्द इतने साफ़ और स्पष्ट रूप से कहे थे।

मुख्य ज्योतिषी ने अपने चश्मे उतारे और बच्चे को ध्यान से देखने लगा।

“जो भी जन्म लेता है, उसे एक दिन मरना ही होता है। इसके लिए हमें आपकी भविष्यवाणी की ज़रूरत नहीं है। कुछ बात तब होती अगर आप यह बता पाते कि उसकी मृत्यु किस तरह होगी,” — यह शब्द नन्हे शाही बच्चे ने अपनी पतली सी आवाज़ में कहे।

मुख्य ज्योतिषी ने आश्चर्य में अपनी उंगली नाक पर रख ली
दस दिन का बच्चा बोलने लगा!
सिर्फ इतना ही नहीं, वह बुद्धिमत्तापूर्ण सवाल भी कर रहा है!
यह तो अविश्वसनीय है! ये तो मानो युद्ध मंत्रालय की रिपोर्ट जैसी बातें लग रही हैं, न कि कोई सच्चाई।

फिर ज्योतिषी ने अपनी उंगली नाक से हटाई और नन्हे राजकुमार की ओर गौर से देखा

उसने कहा —“राजकुमार का जन्म वृषभ लग्न में हुआ है। वृषभ (बैल) और बाघ (टाइगर) एक-दूसरे के दुश्मन होते हैं। इसलिए, इसकी मृत्यु बाघ के कारण ही होगी।”

अब आप सोच सकते हैं कि जैसे ही ‘बाघ’ शब्द सुनाई दिया होगा, राजकुमार जंग जंग बहादुर डर से कांप उठा होगा
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
जैसे ही उसने ‘बाघ’ शब्द सुना, उसने गहरी आवाज़ में दहाड़ लगाई
उसके मुंह से डरावने शब्द निकले

“बाघ सावधान रहें!”

यह बात प्रतिबंधपुरम में फैली एक अफवाह मानी जाती है।
लेकिन पीछे मुड़कर देखें तो लगता है कि इसमें कुछ न कुछ सच्चाई जरूर रही होगी।


PART – II

राजकुमार जंग जंग बहादुर दिन-ब-दिन लंबे और मज़बूत होते गए। उसकी बचपन की ज़िंदगी में, पहले बताए गए चमत्कार के अलावा, कोई और चमत्कारी घटना नहीं हुई

वह लड़का अंग्रेजी गाय का दूध पीता था,
उसे एक अंग्रेज आया (नैनी) ने पाला,
एक अंग्रेज शिक्षक ने पढ़ाया,
और वह सिर्फ अंग्रेजी फिल्में ही देखता था —
बिलकुल वैसे ही जैसे उस समय के दूसरे भारतीय रियासतों के राजकुमारों के साथ होता था।

जब वह बीस साल का हुआ, तब तक राज्य कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स के नियंत्रण में था,
लेकिन अब वह पूरा राज्य उसके हाथों में आ गया

लेकिन पूरे राज्य में लोग अभी भी ज्योतिषी की भविष्यवाणी को याद करते थे
कई लोग अब भी उस पर चर्चा करते रहते थे। धीरे-धीरे ये बातें महाराजा के कानों तक भी पहुँचने लगीं।

प्रतिबंधपुरम राज्य में असंख्य जंगल थे। और उन जंगलों में कई बाघ रहते थे।
महाराजा को एक पुरानी कहावत याद थी — “आत्मरक्षा में तो गाय को भी मारा जा सकता है।”
तो फिर आत्मरक्षा में बाघ मारने में भला क्या आपत्ति हो सकती है?
महाराजा ने बाघों का शिकार शुरू कर दिया

जब उन्होंने पहला बाघ मारा, तो वह खुशी से फूले नहीं समाए
उन्होंने राज्य के ज्योतिषी को बुलवाया और उसे मरे हुए बाघ को दिखाया

उन्होंने गर्व से पूछा —
“अब तुम क्या कहते हो?”

ज्योतिषी ने शांत स्वर में कहा —
“महाराज, आप ऐसे ही निन्यानवे बाघ मार सकते हैं। लेकिन…”

“लेकिन क्या? निडर होकर बोलो।”

“लेकिन आपको सौवें बाघ से बहुत सावधानी बरतनी होगी।”

“और अगर मैं सौवां बाघ भी मार दूं?” महाराजा ने पूछा।

“तो मैं अपनी सारी ज्योतिष की किताबें फाड़ दूँगा, उन पर आग लगा दूँगा और…”

“और…”

“मैं अपनी चोटी काटकर, बाल छोटे करवा लूंगा और बीमा एजेंट बन जाऊँगा,”
— ज्योतिषी ने घबराए हुए अंदाज़ में बात पूरी की।


PART – III

उस दिन के बाद से ही प्रतिबंधपुरम के सभी बाघों के लिए जश्न का समय शुरू हो गया।

राज्य में महाराजा के अलावा किसी और को बाघ मारने पर पाबंदी लगा दी गई।
एक घोषणा जारी की गई कि अगर किसी ने बाघ पर पत्थर भी फेंका, तो उसकी संपत्ति और दौलत जब्त कर ली जाएगी

महाराजा ने संकल्प लिया कि वह बाकी सारे काम तभी करेगा जब सौ बाघों का शिकार पूरा हो जाएगा
शुरूआत में तो ऐसा लग रहा था कि राजा अपने लक्ष्य को ज़रूर पा लेंगे

हालाँकि, इसका मतलब ये नहीं कि उन्हें कोई खतरा नहीं था
कई बार ऐसा हुआ कि गोलियाँ निशाने पर नहीं लगीं,
बाघ ने उन्हें झपट लिया,
और उन्होंने खाली हाथों से बाघ से लड़ाई की
हर बार महाराजा ही विजयी हुए

एक बार ऐसा भी समय आया जब महाराजा को अपना सिंहासन खोने का खतरा हो गया था।

एक उच्च पद पर आसीन ब्रिटिश अधिकारी प्रतिबंधपुरम आया।
वह बाघों का शिकार करने का बहुत शौकीन था —
और उससे भी ज्यादा बाघ के शव के साथ अपनी फोटो खिंचवाने का
जैसा कि उसकी आदत थी, वह यहाँ भी बाघ का शिकार करना चाहता था

लेकिन महाराजा अपने निश्चय पर अडिग थे। उन्होंने अनुमति देने से साफ मना कर दिया

महाराजा ने कहा —
“मैं आपके लिए कोई और शिकार की व्यवस्था कर सकता हूँ।
आप सूअर का शिकार करें, चूहों का करें,
यहाँ तक कि मच्छरों का शिकार भी करवाया जा सकता है।
लेकिन बाघ का शिकार? यह बिलकुल नामुमकिन है!”

ब्रिटिश अधिकारी के सचिव ने दीवान के ज़रिए महाराजा को यह सूचना भेजी कि
दुराई (अंग्रेज़ अधिकारी) खुद बाघ नहीं मारेगा,
शिकार महाराजा ही करें,
बस उसे तो एक फोटो चाहिए, जिसमें वह बंदूक लिए बाघ के शव के पास खड़ा हो

लेकिन महाराजा ने इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया
उन्होंने सोचा — अगर अब रियायत दी, तो आगे आने वाले और ब्रिटिश अधिकारी भी बाघों का शिकार मांगेंगे

इस तरह एक ब्रिटिश अधिकारी की इच्छा पूरी न करने के कारण,
महाराजा को अपना राज्य तक खो देने का डर पैदा हो गया था।

महाराजा और दीवान ने इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श किया
आख़िरकार, एक प्रसिद्ध ब्रिटिश आभूषण कंपनी (ज्वैलर्स) को, जो कलकत्ता में थी,
तत्काल एक टेलीग्राम भेजा गया
“कीमती हीरे की अंगूठियों के अलग-अलग डिज़ाइन के नमूने भेजिए।”

कुछ ही दिनों में करीब पचास अंगूठियाँ आ गईं।
महाराजा ने सभी अंगूठियाँ उस ब्रिटिश अधिकारी की पत्नी (दुरायसानी) को भेज दीं

महाराजा और दीवान को उम्मीद थी कि दुरायसानी एक-दो अंगूठियाँ चुनेंगी और बाकी लौटा देंगी
लेकिन जल्दी ही उसका जवाब आया
“आपके उपहारों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।”

दो दिन बाद ही ब्रिटिश ज्वैलर्स की तरफ़ से तीन लाख रुपये का बिल आ गया
महाराजा खुश थे कि भले ही उन्हें तीन लाख का घाटा हुआ, लेकिन उन्होंने अपना राज्य तो बचा लिया!


PART – IV

महाराजा का बाघों का शिकार बहुत सफलतापूर्वक चलता रहा
दस साल के अंदर ही उन्होंने सत्तर बाघ मार दिए

लेकिन फिर, अचानक एक अड़चन आ गई, जिसने उनके मिशन को रोक दिया

प्रतिबंधपुरम के जंगलों से बाघों की आबादी ही खत्म हो गई थी
अब वहां कोई भी बाघ बचा नहीं था

कौन जानता है कि —
बाघों ने खुद ही जन्म पर नियंत्रण (birth control) अपनाया हो,
या फिर सामूहिक आत्महत्या (हराकिरी) कर ली हो,
या फिर शायद वे राज्य छोड़कर भाग गए हों,
क्योंकि उन्हें मारने के लिए सिर्फ अंग्रेजों की गोली ही पसंद थी?

एक दिन महाराजा ने दीवान को बुलवाया
उन्होंने बंदूक लहराते हुए कहा —
“दीवान साहब, क्या आपको पता नहीं है कि अभी भी मेरी इस बंदूक से तीस बाघों को मारा जाना बाकी है?”

बंदूक देखकर दीवान काँपते हुए चिल्ला पड़ा
“महाराज! मैं कोई बाघ नहीं हूँ!”

“कौन मूर्ख तुम्हें बाघ कहेगा?” महाराजा बोले।

“और मैं बंदूक भी नहीं हूँ!” दीवान ने घबराते हुए कहा।

“तुम ना तो बाघ हो, ना ही बंदूक।
दीवान साहब, मैंने तुम्हें किसी और वजह से बुलाया है —
मैंने शादी करने का फैसला किया है।”

अब दीवान और ज़्यादा घबरा गया।
“महाराज, मेरी तो पहले से ही दो पत्नियाँ हैं। अगर मैं आपसे शादी कर लूँ तो…”

“बकवास मत करो! मैं तुमसे शादी क्यों करूंगा?
मुझे तो एक बाघ चाहिए…”

“महाराज! कृपया एक बार फिर सोच लीजिए।
आपके पूर्वज तलवार से विवाह करते थे।
अगर चाहें तो बंदूक से शादी कर लीजिए।
एक टाइगर किंग ही इस राज्य के लिए बहुत है, इसे टाइगर क्वीन की कोई ज़रूरत नहीं!”

महाराजा जोर से हँस पड़े और बोले —
“मैं ना बाघ से शादी कर रहा हूँ, ना बंदूक से,
बल्कि इंसानों में से किसी लड़की से।

पहले तो तुम अलग-अलग रियासतों में बाघों की संख्या का आंकड़ा निकालो,

फिर ये पता लगाओ कि कहीं ऐसी कोई राजकुमारी है या नहीं जिससे मैं शादी कर सकूं —
लेकिन शर्त ये है कि उसके राज्य में बाघ बहुत होने चाहिए!”

दीवान ने महाराजा के आदेश का पालन किया
उसे एक ऐसा राज्य मिल गया जहाँ बाघों की संख्या बहुत ज़्यादा थी,
और वहाँ की राजकुमारी को उसने चुना

अब जब भी महाराजा जंग जंग बहादुर अपने ससुराल जाते,
वे हर बार पाँच या छह बाघों का शिकार करते।

इस तरह, धीरे-धीरे
प्रतिबंधपुरम के महल के स्वागत कक्ष की दीवारों पर
निन्यानवे बाघों की खालें सजाई गईं


PART – V

जब महाराजा के सौ बाघों के लक्ष्य में सिर्फ एक ही बाघ बाकी रह गया,
तो उनकी चिंता चरम सीमा पर पहुंच गई

दिन में उन्हें सिर्फ यही बात सताती,
और रात में भी वही सपना आता

अब तो उनके ससुराल के जंगलों में भी बाघ खत्म हो चुके थे
कहीं भी बाघ मिलना नामुमकिन सा हो गया था

लेकिन उन्हें तो बस एक बाघ और मारना था
अगर वह एक आखिरी बाघ मारा जाता,
तो महाराजा के सभी डर खत्म हो जाते,
और वे बाघों का शिकार करना पूरी तरह बंद कर सकते थे

लेकिन उन्हें सौवें बाघ को लेकर बेहद सतर्क रहना था
आख़िर मुख्य ज्योतिषी ने क्या कहा था?
“यहाँ तक कि जब निन्यानवे बाघ मारे जा चुके हों, तब भी महाराजा को सौवें बाघ से सावधान रहना चाहिए…”

बिलकुल सही बात थी।
आख़िर बाघ एक क्रूर जानवर है।
उससे सावधानी बरतना ही चाहिए।
लेकिन सवाल ये था —
वह सौवां बाघ आखिर मिलेगा कहाँ?
जैसे बाघ का दूध मिलना मुश्किल है, वैसे ही अब ज़िंदा बाघ का मिलना भी नामुमकिन लग रहा था

इस तरह, महाराजा उदासी में डूब गए

लेकिन जल्दी ही एक खुशखबरी आई जिसने उनका मन हल्का कर दिया —
उनके ही राज्य के एक पहाड़ी गाँव में भेड़ें लगातार गायब होने लगी थीं

सबसे पहले यह पक्की तरह से जांचा गया कि यह काम ख़ादर मियाँ साहब या वीरासामी नायकर का तो नहीं है —
जिनकी भेड़ें निगल जाने की काबिलियत के लिए ख्याति थी।
जब यह साफ़ हो गया कि ये दोनों नहीं हैं, तो पक्का हो गया कि यह किसी बाघ का ही काम है
गाँव वाले भागे-भागे महाराजा को खबर देने पहुंचे

महाराजा बहुत खुश हुए और उन्होंने उस गाँव को तीन साल तक के लिए कर (tax) से छूट देने की घोषणा कर दी।
और खुद तुरंत शिकार पर निकल पड़े

लेकिन बाघ आसानी से नहीं मिला
ऐसा लग रहा था जैसे उसने जानबूझकर खुद को छिपा लिया हो,
ताकि महाराजा की इच्छा का मज़ाक उड़ा सके

लेकिन महाराजा भी पूरी तरह अड़े हुए थे
उन्होंने साफ कह दिया कि जब तक बाघ नहीं मिलेगा, वे जंगल से बाहर नहीं जाएंगे

जैसे-जैसे दिन बीतते गए,
महाराजा का गुस्सा और जिद दिन-ब-दिन खतरनाक रूप से बढ़ने लगी
कई अधिकारियों को उनकी नौकरी से निकाल दिया गया

एक दिन, जब महाराजा का गुस्सा अपनी चरम सीमा पर था,
उन्होंने दीवान को बुलाया और तुरंत भूमि कर (land tax) दोगुना करने का आदेश दे दिया।

दीवान ने चिंता जताई —
“जनता नाराज़ हो जाएगी। फिर हमारा राज्य भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का शिकार बन सकता है।”

महाराजा ने ठंडे स्वर में कहा —
“तो फिर तुम अपने पद से इस्तीफ़ा दे दो।”

अब दीवान को यह साफ़ समझ में आ गया कि
अगर महाराजा को जल्द ही कोई बाघ नहीं मिला,
तो परिणाम बहुत ही भयानक हो सकते हैं

उसे कुछ राहत तब मिली जब उसने अपने घर में उस बाघ को देखा,
जो मद्रास के पीपल्स पार्क से लाया गया था और छिपाकर रखा गया था

आधी रात को, जब पूरा शहर शांति से सो रहा था,
दीवान और उसकी बूढ़ी पत्नी ने बाघ को कार में घसीटा और सीट पर डाल दिया
दीवान ने खुद कार चलाकर उसे उस जंगल में पहुँचाया,
जहाँ महाराजा शिकार कर रहे थे।

लेकिन जैसे ही वे जंगल में पहुँचे,
बाघ ने “सत्याग्रह” शुरू कर दिया
वह कार से बाहर निकलने को तैयार नहीं था

दीवान ने उसे कार से खींच-खींचकर बाहर निकालने की बहुत कोशिश की,
लेकिन वह पूरी तरह थक गया और बुरी तरह हांफने लगा

अगले दिन, वही बूढ़ा बाघ धीरे-धीरे चलते हुए महाराजा के सामने आ गया
वह ऐसे खड़ा था जैसे विनम्रता से प्रार्थना कर रहा हो
“स्वामी, मुझे क्या आज्ञा है?”

महाराजा ने बेहद खुशी के साथ बारीकी से निशाना साधा और गोली चलाई।
बाघ एक ढेर की तरह ज़मीन पर गिर पड़ा

“मैंने सौवां बाघ मार दिया! मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो गई!”
महाराजा उत्साह और गर्व से भर उठे

उन्होंने आदेश दिया कि बाघ को राजधानी ले जाया जाए,
भव्य जुलूस के साथ
और वे खुद जल्दी से अपनी कार में रवाना हो गए

महाराजा के जाने के बाद शिकारियों ने पास जाकर बाघ को देखा
बाघ ने आँखें मटकाते हुए उनकी ओर देखा, जैसे कह रहा हो — “अब क्या करने वाले हो?”

शिकारियों को समझ आ गया कि बाघ मरा नहीं था,
गोली चूक गई थी,
और वह तो बस गोलियों की आवाज़ से बेहोश हो गया था

अब वे सोच में पड़ गए —
अगर महाराजा को यह पता चल गया कि बाघ नहीं मरा,
तो उनकी नौकरियाँ चली जाएँगी

इसलिए, उनमें से एक शिकारी ने
सिर्फ एक फुट की दूरी से बाघ को गोली मार दी,
और इस बार निशाना सही लगा,
बाघ सचमुच मर गया

फिर, जैसा कि महाराजा ने आदेश दिया था,
मरे हुए बाघ को पूरे नगर में जुलूस के साथ घुमाया गया
और उसे दफ़न करके एक समाधि (tomb) बनाई गई

कुछ ही दिनों बाद महाराजा के बेटे का तीसरा जन्मदिन मनाया गया।
अब तक महाराजा ने अपना सारा ध्यान बाघों के शिकार में ही लगा रखा था
उन्हें राजकुमार के लिए कभी समय ही नहीं मिला

लेकिन अब उन्होंने बच्चे की ओर ध्यान देना शुरू किया
वे उसके लिए जन्मदिन पर कोई खास तोहफा देना चाहते थे

वे प्रतिबंधपुरम के बाजार गए और हर दुकान छान मारी,
लेकिन उन्हें कोई उपयुक्त तोहफा नहीं मिला

आखिरकार, एक खिलौनों की दुकान में उनकी नजर एक लकड़ी के बाघ पर पड़ी।
उन्होंने सोचा — “यह एकदम सही तोहफा है।”

उस लकड़ी के बाघ की कीमत सिर्फ दो आना और एक चौथाई थी।
लेकिन दुकानदार जानता था कि अगर वह इतनी कम कीमत बताएगा,
तो आपातकाल के नियमों के तहत उसे सजा हो सकती है

इसलिए उसने कहा —
“महाराज, यह तो बहुत ही दुर्लभ कारीगरी का नमूना है। केवल तीन सौ रुपये में आपका सौदा पक्का!”

“बहुत अच्छा। यही राजकुमार को उसके जन्मदिन पर तुम्हारी ओर से भेंट हो,”
महाराजा ने कहा और वह लकड़ी का बाघ अपने साथ ले गए

उसी दिन पिता और पुत्र दोनों ने मिलकर उस छोटे से लकड़ी के बाघ से खेला
लेकिन वह बाघ एक अनाड़ी बढ़ई द्वारा बनाया गया था

उसकी सतह बहुत खुरदुरी थी,
और उसमें से लकड़ी की पतली-काँटों जैसी फांसें (slivers) हर तरफ निकली हुई थीं

उन्हीं में से एक कांटा महाराजा के दाहिने हाथ में चुभ गया
उन्होंने उसे बाएं हाथ से निकाल दिया
और राजकुमार के साथ खेलते रहे

अगले दिन महाराजा के दाहिने हाथ में संक्रमण (infection) फैल गया
चार दिनों में वह एक फोड़े (सड़ा हुआ घाव) में बदल गया
जो धीरे-धीरे पूरा हाथ फैलकर घेर चुका था

मद्रास से तीन प्रसिद्ध सर्जनों को बुलाया गया
उन्होंने आपस में सलाह की और ऑपरेशन करने का फैसला लिया
ऑपरेशन किया गया।

ऑपरेशन थियेटर से बाहर आकर
तीनों सर्जनों ने घोषणा की
“ऑपरेशन सफल रहा। महाराजा की मृत्यु हो चुकी है।”

इस तरह सौवें बाघ ने टाइगर किंग से अपना अंतिम बदला ले लिया।


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