Class 7 Lesson 1″The Day the River Spoke” Hindi Translation – NCERT Textbook Poorvi

Here is the Hindi translation of the chapter “The Day the River Spoke” by Kamala Nair, which is the first lesson in Unit 1 ‘Learning Together’ of the NCERT English textbook “Poorvi” for Grade 7.

“The Day the River Spoke” – Translation in Hindi

The line-by-line Hindi translation of the lesson “The Day the River Spoke” has been provided here to assist CBSE Class 6 students studying the NCERT English textbook “Poorvi.” It will help students understand the entire chapter through self-study. Enjoy the lesson “The Day the River Spoke” in Hindi!

Part – I of “The Day the River Spoke”

उसकी नाक पर एक बड़ी, चमकदार आँसू की बूँद टपकी। और फिर एक और बूँद बह निकली। एक चमचमाता नीला किंगफिशर पक्षी सूरज की रोशनी में तीर की तरह नीचे उतरा। और एक हरी छिपकली फिसलती हुई नदी के किनारे धूप सेंकने चली गई।

“अरे, अरे!” एक उनींदी और धीमी आवाज़ ने कहा, “क्या बात है?”

जान्हवी चौंक गई, क्योंकि उसे पूरा यक़ीन था कि वह वहाँ बिलकुल अकेली थी। ये आवाज़ छिपकली की तो नहीं हो सकती थी। किंगफिशर तो बांसों की झाड़ियों में बैठकर अपनी पकड़ी हुई मछली खा रहा था। तोते भी नहीं हो सकते थे, क्योंकि तोते तो तेज़ चिल्लाते हैं, और यह आवाज़ बहुत शांत और नींद भरी थी। उसने चारों ओर देखा। वहाँ कोई भी नहीं था। वह थोड़ी डर गई और भागना चाहती थी।

“तुम्हें रोना नहीं चाहिए, जानती हो,” वह आवाज़ फिर बोली।
“और तुम्हें डरना भी नहीं चाहिए, जब तुम हर दिन, अच्छा… लगभग हर दिन, मुझसे मिलने यहाँ आती हो।”

वह हैरान हो गई। यह आवाज़ तो नदी जैसी लग रही थी। लेकिन यह नदी कैसे हो सकती थी!

“अच्छा, मुझे सब कुछ बताओ,” नदी ने कहा, क्योंकि सच में वह नदी ही थी। “मुझे समुद्र तक जल्दी पहुँचना है, जानती हो।”

“वे मुझे स्कूल नहीं जाने देते,” जान्हवी ने कहा। “मैंने माँ से पूछा, ‘मैं एट्टन और मीना की तरह स्कूल क्यों नहीं जा सकती?’
और माँ ने जवाब दिया, ‘तुम बहुत छोटी हो, बच्ची। शायद बाद में।'” लेकिन जब वह पाँच साल की थी, तब छोटा रामू पैदा हुआ। और माँ ने फिर कहा, “शायद अगले साल। जान्हवी, मैं खेतों में जा रही हूँ, तुम अपने छोटे भाई का ध्यान रखना।”

अब वह लगभग दस साल की थी और छोटे अप्पू का ध्यान रख रही थी, जो सबसे छोटा था। “वे मुझे नहीं चाहते। वे सिर्फ…” — वह रुक गई और सिसकने लगी…

“मुझे स्कूल जाने में डर लगता है। और अब मैं इतनी बड़ी हो गई हूँ कि वे मुझे कभी भी स्कूल नहीं भेजेंगे। लेकिन मैं स्कूल जाना चाहती हूँ। मैं एट्टन और मीना की तरह पढ़ना सीखना चाहती हूँ।” जान्हवी अपने भाई को ‘एट्टन’ कहती थी।
‘एट्टन’ का मतलब है ‘बड़ा भाई’, लेकिन उसका असली नाम गोपी था।

“मैं जानना चाहती हूँ कि पीले फूलों में मकड़ियाँ भी पीली क्यों होती हैं, कि बांस के पेड़ सरसराते क्यों हैं, कि चाँद हमेशा पहाड़ियों के पीछे से ही क्यों निकलता है, दूसरी तरफ से क्यों नहीं, कि खेतों के पानी में रहने वाली मछलियाँ कैसे मेंढक बन जाती हैं, क्यों…”

“रुको!” नदी ने कहा। “तुम मुझे थका रही हो। इतने सारे ‘क्यों’!” “मैं तुम्हें बता सकती हूँ कि चाँद कहाँ जाता है,” नदी ने धीरे से कहा, जैसे कोई राज़ बता रही हो।
“चाँद समुद्र की ओर चला जाता है। मैंने देखा है; वह हमेशा एक ही रास्ते से जाता है — पहाड़ों के ऊपर से होकर और फिर नीचे समुद्र की ओर, ठीक मेरी तरह!”


Part – II of “The Day the River Spoke”

“यहाँ तक कि छोटा रामू भी स्कूल जाता है,” जान्हवी ने कहा। “काश, स्कूल समुद्र के पास होता,” नदी ने कहा। “तो मैं तुम्हें अपने साथ ले जा सकती थी, जानती हो। लेकिन शायद मैं सच में ऐसा नहीं कर पाती। तुम्हारे पैर गीले हो जाते, और वह तो बिलकुल अच्छा नहीं होता! मुझे डर है कि तुम्हें खुद ही कुछ करना होगा।”

“क्या मैं कुछ कर सकती हूँ?” जान्हवी ने पूछा। “हाँ, यह तुम्हारे ऊपर है,” नदी ने कहा। “मुझे तो लगता है कि छोटी लड़कियाँ भी छोटे लड़कों जितना कुछ कर सकती हैं—वे उतनी ही तेज़ तैरती हैं। तुम एक सुबह चुपचाप स्कूल चली जाओ, वहाँ बैठो और सुनो कि क्या हो रहा है, शायद टीचर तुम्हें रुकने दें।”

“मैं नहीं कर सकती,” जान्हवी ने घबराते हुए कहा। “मैं नहीं कर सकती! वे मुझे डरा देंगे! वे मुझे वहाँ से भगा देंगे।”

नदी हँसी। “तुम? डरी हुई?” नदी ने कहा, “जबकि तुम हरी छिपकली से नहीं डरती, या बांस के झुरमुट में रहने वाले साँप से भी नहीं डरती, (जान्हवी चौंक गई) या उस पुल के पास तेज़ आवाज़ करते बड़े ट्रेनों से भी नहीं डरती।” “ट्रेनें बहुत शोर मचाती हैं; मुझे तो जहाज ज़्यादा अच्छे लगते हैं,” नदी ने कहा।

जान्हवी को कभी पता ही नहीं था कि बांस के झुरमुट में एक साँप रहता है।

“जहाज क्या होते हैं?” उसने पूछा।

“बड़ी नावें,” नदी ने कहा, “इतनी बड़ी कि सैकड़ों लोग उसमें बैठ सकते हैं, और वे समुद्र में चलती हैं, रात भर उनके रोशनी वाले लाइट जलते रहते हैं।”

जान्हवी ने अपनी साँस रोक ली। “क्या वे यहाँ आएँगे?” उसने पूछा।

“मुझे डर है कि नहीं,” नदी ने कहा। “बहुत बड़े होते हैं, जानती हो। चंदू की कटमरैन (छोटी नाव) मेरे लिए काफी है। चंदू एक दिन तुम्हें किसी जहाज को देखने ले जा सकता है।”

“वे मुझे कभी नहीं जाने देंगे!” जान्हवी रो पड़ी।

“पहले स्कूल जाने की कोशिश करो,” नदी ने कहा। “याद रखो — सब तुम्हारे अपने हाथ में है!”


जान्हवी ने हिम्मत जुटाई। अगले दिन वह दौड़ती हुई, हाँफती हुई स्कूल पहुँची, और दरवाजे के पास खड़ी होकर ध्यान से सुनने लगी जब टीचर पाठ पढ़ा रहे थे। यह कहानी एक राजकुमार अशोक की थी, जो एक महान राजा बन गया था। छोटा अप्पू उसकी गोदी में सो गया था। जान्हवी धीरे-धीरे पास आती गई जब तक वह मिट्टी के फर्श पर पीछे वाली कतार में बैठने नहीं लगी। छोटा अप्पू बिलकुल शांत था और वह चुपचाप सुनती रही।

“तुम कहाँ से आई, छोटी लड़की?” टीचर ने पूछा। “और तुम्हारा नाम क्या है? तुम मेरी कक्षा में नई हो।”

“यह गोपी की बहन है, गोपी अगली कक्षा में पढ़ता है,” एक लड़के ने कहा। “यह जान्हवी है,” दूसरे ने कहा। “तो तुम गोपी की छोटी बहन हो? अच्छा लड़का है गोपी,” टीचर ने कहा।

“अगर तुम सच में, सच में मेरे स्कूल आना चाहती हो, जान्हवी,” टीचर ने कहा, “तो हम तुम्हारे पापा से बात करेंगे। चिंता मत करो। हम कोई रास्ता निकाल लेंगे।”

अगली शाम जब जान्हवी दीपक जला रही थी, तो उसने देखा कि टीचर उनके दरवाजे की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे।

वह देख सकती थी कि उसके पापा अपनी गाल खुजा रहे थे, जैसे वे तब करते थे जब वे परेशान होते थे, और टीचर सिर हिला रहे थे और कुछ कह रहे थे, लेकिन जान्हवी ठीक से सुन नहीं पाई।

फिर माँ ने कहा, “छोटी जान्हवी, जब तुम स्कूल जाओगी तो मैं तुम्हें बहुत याद करूँगी। लड़कियों को भी उतनी पढ़ाई करनी चाहिए जितनी वे करना चाहें। जब मैं तुम्हारी उम्र की थी, तो मैं भी स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन तुम्हारी दादी ने ‘नहीं’ कहा था। लेकिन अब, मैं खुश हूँ कि टीचर तुम्हारे पापा से बात करने आए।”

और जान्हवी ने कहा, “माँ, जब मैं बड़ी हो जाऊँगी, तो मैं एक टीचर बनूँगी और मैं हमारे गाँव-गाँव में घर-घर जाऊँगी और सभी छोटी लड़कियों से कहूँगी कि वे मेरे स्कूल आएं। और मैं उन्हें वही सब सिखाऊँगी जो मैं सीखने जा रही हूँ।”

अगले दिन सुबह, स्कूल शुरू होने से पहले, वह खेतों के बीच से होते हुए नदी से मिलने जा रही थी। “मैंने कर दिखाया!” उसने नदी से कहा। “मैं डरी हुई थी, लेकिन मैंने कर दिया! और वे मुझे स्कूल जाने देंगे। मैं अपना नाम लिखना और जोड़े करना सीखूँगी, और यह पता लगाऊँगी कि हमारे छोटे-से मछली जो खेतों में रहती हैं, कैसे मेंढ़क बन जाती हैं।”

वह नदी की धीरे-धीरे हँसी सुन सकती थी, “फिर आना, छोटी लड़की, और मैं तुम्हें समुद्र में चलने वाले जहाजों के बारे में सब कुछ बताऊँगी।”

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KamaLa Nair
(Adapted from The Day the River Spoke)
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